GERABARI WEATHER

पर मुँह से एक शब्द भी नहीं निकाला।

सहती रहो माँ ने कहा था।

सहती जाओगी तो धरती कहलाओगी दादी ने कहा।
फिर वो भी कभी बही सरिता बन
कभी पहाड़ हो गई कभी किसी अंकुर की माँ हो गई
पर मुँह से एक शब्द भी नहीं निकाला।






एक स्त्री से अन्य तक पहुँची यही बात

सब अपनी-अपनी जगह होती चली गई जड़वत्
बनती चली गई धरती जैसी।


हर धरती के आसपास रहा कोई चाँद
तपिश भी देता रहा कोई सूरज
तब से पूरा का पूरा

सौर मंडल साथ लिए घूमने लगी है स्त्री ।
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