हमारा दर्द फैला पडा था कागज परजो समझा रो दिया जो न समझा मुस्कुरा दिया…
मुझे गरीब समझ कर महफिल से निकाल दिया”……”क्या चाँद की महफिल मे सितारे नही होते ”
जब भी देखता हूँ तेरी मोहब्बत की पाकीज़गीदिल करता है तेरी रूह को काला टीका लगा दूँ…
क्या जरूरत, क्यों जफाएं बागबां तेरी सहें,जा तुझे गुलशन मुबारक, मुझको वीराने बहुत।
दिल से नाज़ुक नही, दुनिया में कोई चीज साहिबा,लफ्ज़ का वार भी, खंजर की तरह लगता है..!
मुझें मोहब्बत हो गयी है ,अकेलेपन से,मैं ….बच तो जाऊँगा ना …???
लोगो ने कुछ दिया, तो सुनाया भी बहुत कुछ ऐ खुदा;एक तेरा ही दर है, जहा कभी “ताना” नहीं मिला!
मेरी ज़िन्दगी में एक ऐसा शक्श भी है,,,जो मेरी पूरी ज़िन्दगी है और मै उसका एक लम्हा भी नही…
इतना भी ना तराशो कि वजूद ही ना रहे हमारा……हर पत्थर की किस्मत मे नहीं होता संवर कर खुदा हो जाना….
ये दिल तुम्हारे पास गिरवी है, इसलिए तुम्हारी कदर करते हैं….वरना तेरी जो फितरत है .. वो नफरत के भी काबिल नही …….
हद से बढ़ जाये ताल्लुक़ तो गम मिलते हैं,हम इसी वास्ते हर शख्स से कम मिलते हैं.
कुछ रिशते ऐसे होते हैं..जिनको जोड़ते जोड़ते इन्सान खुद टूट जाता है।
क्रोध हवा का वह झोंका है,जो बुद्धि के दीपक को बुझा देता है ।
में उनमे से नहीं हु जो बोल के फिर जाये,में वो हूँ , जो बोलू वो कर के मिट जाये।
जिन्हें पता है कि अकेलापन क्या होता है, वो लोगदूसरों के लिए हमेशा हाजिर रहते हैं..!!
“सिर्फ तुम ही नहीं अजीज…तुम्हारी आदतें भी अजीज हैं..,कि तुम भुल भी जाते हो…तो भी बुरा नहीं लगता…!”
तेरी खवाहीश कर ली तो कौन सा गुनाह कर दिया!लोग तो इबादत मैं पुरी कायनात मांगते है!
फूल भी दे जाते हैं ज़ख़्म गहरे कभी-कभी…हर फूल पर यूँ ऐतबार ना कीजिये…
उसकी जरूरत उसका इंतजार और अकेलापन..थक कर मुस्कुरा देता हूँ, मैं जब रो नहीं पाता.
अपने लफ्ज़ों पर गौर कर के बता,लफ्ज़ कितने थे, और तीर कितने….?
परखता रहा उम्र भर, ताकत दवाओं की,दंग रह गया देख कर, ताकत दुआओं की!
यूँ तो मसले और मुद्दे बहुत हैं लिखने को मगरकमबख्त़ इन कागज़ों को तेरा ही ज़िक्र अज़ीज़ है!!!
इरादे भी रूठा है बच्चे की तरह …की मुजे चाँद चाइये या कुछ बी नहीं ……
मुफ़्त में सिर्फ माँ बाप का प्यार मिलता है इसके बाददुनिया में हर रिश्ते के लिए कुछ न कुछ चुकाना पड़ता है..!
बदलते वक्त के साथ तू , बदला है,ये इश्क है तेरा या फिर , बदला है.!!
अकेले ही गुज़रती है ज़िन्दगी.लोग तसल्लियां तो देते हैं पर साथ नहीं.
तुमको देखा तो मौहब्बत भी समझ आई,वरना इस शब्द की तारीफ ही सुना करते थे..
क़यामत के रोज़ फ़रिश्तों ने जब माँगा उससे ज़िन्दगी का हिसाब;ख़ुदा, खुद मुस्कुरा के बोला, जाने दो, ‘मोहब्बत’ की है इसने।
“नींद तो अब भी बहुत आती है मगर…समझा-बुझा के मुझे उठा देती हैं जिम्मेदारियां..!!
अब तेरी नशीली आँखों का नशा नहीं मिलता,सुक्र है शराब का, तेरी कमी नहीं दिलाता।
जैसे लोग शराब में पानी मिलाते है,वैसे हम तेरी याद में शराब मिलाते है।
काश कोई तो पैमाना होता मुहब्बत को नापने का,तो शान से आते तेरे सामने सबूत के साथ….
तेरी आँखों की सादगी देखने नहीं मिलती,इसीलिए शराब से नाता जोड़ लिया मैंने ।
युँ तो मुद्दते गुजार दी है हमने तेरे बगैर..मगर आज भी तेरी यादों का एक झोंका मुझे टुकड़ो मे बिखेर देता है …
एहसान ये रहा तोहमते लगाने वालों का मुझ पर,उठती हुई उँगलियों ने मुझे मशहूर कर दिया।
वो साथ थे तो एक लफ़्ज़ ना निकला लबों से..दूर क्या हुए कलम ने क़हर मचा दिया………
काश मै ऐसी बात लिखूँ तेरी याद मे,तेरी सूरत दिखाई दे हर अल्फ़ाज़ मे..
बात बस इतनी सी हैकी अब “तुम ” “तुम “ना रहे
तु अपने सारे गम OLX पे बेच दे;मेने FLIPCART से तेरे लिए ढेर सारी खुशियाँ मंगवाई है….!!!
काश किस्मत भी नींद की तरह होती,हर सुबह खुल जाती….
वो चाहते है,जी भर के प्यार करना…हम सोचते है,वो प्यार ही क्या, जिससे जी भर जाये…
ना चाँद अपना था , ना तू अपना था,काश दिल भी मान लेता की सब सपना था
कहने को ही मैं अकेला हूं पर हम चार हैएक मैं.. मेरी परछाई.. मेरी तन्हाई.. और तेरा एहसास..
तन्हाई बेहतर है…….झूठे रिश्तों से….
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